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संकल्प नववर्ष का

तुम से मिले सब दर्द पुराने,
और वो अपनी साझी यादें,
जो मन में कोलाहल करतीं,
कभी चैन से बैठ न रहतीं,
सौंप रहा हूँ गये साल को।

उजड़ गईं जो सुबह निराली,
रूठ गईं जो मधुर दुपहरी,
चुप-चुप शामें, रोती रातें,
और वो सारी कड़वी बातें,
सौंप रहा हूँ गये साल को।

सर्द हवा में मन की ठिठुरन,
तेज़ तपिश से सुलगा तन-मन,
नयनों से छलका जो सावन,
पतझड़ में घुटता अंतर्मन,
सौंप रहा हूँ गये साल को।

सौंप दिया सारा सूनापन,
सौंप दिए सारे कटु बंधन,
सौंप दिया है रोज़-रोज़ का,
मन में उठता हर अल्हड़पन।

सौंपा मुट्ठी भर सपनों को,
एक ही प्रण – संघर्ष करेंगे!
सौंपा सब असफलताओं को,
एक ही प्रण – संघर्ष करेंगे!

और कहा है गये साल से,
और पीड़ाओं के पर्वत से,
और पराजय की खाई से,
और टूटते अनुबन्धों से,

कहा स्वयं के संकल्पों से,
टूटो मत – संघर्ष करेंगे!
कहा डगमगाते क़दमों से,
ठहरो मत – संघर्ष करेंगे!

-तल्हा मन्नान