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रचो नई ऋचाएँ


रचो नई ऋचाएँ
कर्म ही जहाँ जात हो
पिछले जन्म का ना कोई पाप हो
अपनाओ नई प्रतिबद्धताएं
रचो नई ऋचाएँ

बहुत हुआ मनुष्यता का संहार
करो रूढ़ियों, बन्धनों का प्रतिकार
करो शाश्वत परिवर्तन को स्वीकार
शुद्ध करो दुर्गन्ध भरी हवाएँ
रचो नई ऋचाएँ

जहां भाग्य ना मनुज का निर्माता हो
नए वेद का नया रचियता हो
कर्म ही सब का मुक्तिदाता हो
गढो नई अनन्त गाथाएँ
रचो नई ऋचाएँ

रहे विश्व गुरु भारत अजेय
करो सुकर्म मिटे विश्व का भरम
फैले बुद्ध, पार्श्व, अशोक का धम्म
लिखो नई धम्म संहिताएँ
रचो नई ऋचाएँ

-सुरेश वर्मा