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मैं देखूंगा

मैं देखूंगा,
ये जो छाती पीट रहे हैं
ये जो हरदम चीख़ रहे हैं
ये जो नफ़रत के सौदागर
आग लगाना सीख रहे हैं
आज से कुछ दिन बाद यहीं पर
जब हर सू ख़ामोशी होगी
जब मौतों पर रोने वाला
कोई आंसू नहीं बचेगा
तब ये लोग कहां पर होंगे?

मैं देखूंगा,
ये फ़र्ज़ी मानवतावादी
ख़ून सनी है जिनकी खादी
जंग बेचते फिरते हैं जो
मक़सद जिनका है बर्बादी
आज से कुछ दिन बाद यहीं पर
दूर-दराज़ किसी गांव में
सैनिक का एक भूखा बच्चा
तारे गिनकर सोता होगा
तब ये लोग‌ कहां पर होंगे?

मैं देखूंगा,
ज़ेड सुरक्षा जीने वाले
सबके मुंह को सीने वाले
दोनों जानिब ऐश उड़ाते
लहू हमारा पीने वाले
आज से कुछ दिन बाद यहीं पर
जब ये धरती डोल उठेगी
जब क़ातिल की आस्तीन में
छिपा लहू भी बोल उठेगा
तब ये लोग‌ कहां पर होंगे?

– तल्हा मन्नान