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मेरा जहां

बदन में कुछ शरारे हैं, रहेंगे
तसव्वुर में सितारे हैं , रहेंगे

रहेगी पांव में आवारगी भी
जो घर हमने संवारे हैं, रहेंगे

यहां से आसमां अच्छा लगा था
ये जंगल भी हमारे हैं, रहेंगे

मेरे असबाब कमरे से निकालो
परिंदे ढेर सारे हैं, रहेंगे

हवा, तारे, अंधेरे, चांद, जुगनू
जो रातों के सहारे हैं, रहेंगे

मैं गीली आंख रख आया वहीं पे
जहां साए तुम्हारे हैं, रहेंगे

ख़ुदा मालिक रहे ऐसे ज़हां का
यहां हम से बेचारे हैं, रहेंगे

-ध्रुव गुप्त