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बाशिंदा

सवाल है, क्या पसंदीदा मुझमें
जवाब, मेरा अहं शर्मिंदा मुझमें…

बस्ता था मुझमें, वो कबका छोड़ गया
रहता है कोई और बाशिन्दा मुझमें..

बंद है, तक़दीर के दरवाजे फिर भी
ख्वाइशों का है, इक लम्बा पुलिंदा मुझमें..

यूं तो बे-असर है सारी कोशिश..
फिर भी है, इक जुनूनी कारिंदा मुझमें।

थपेड़ों ने ज़िन्दगी को किया घायल मगर
लड़ने की है ज़िद चुनिंदा मुझमें..

कहने को तो, जमीं से जुड़ा आदमी हूं,
पर उड़ने को है तैयार, इक परिंदा मुझमें..

हो चुके हैं हर जज़्बात दफ़्न मगर,
वो इक ख़याल है अब भी जिंदा मुझमें ।

-शशांक कुमार द्विवेदी