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बचपन की यादें

बहुत दिनों की बात पुरानी याद आई
सच के जैसी एक कहानी याद आई

मां के साए भात की ख़ुशबू वाली शाम
सौ – सौ किस्सों वाली नानी याद आई

जंगल के बैताल, गुफा के आदमखोर
परियों की आंखें नूरानी याद आई

टूटा छप्पर, गीली मिट्टी, उजली नींद
आंगन गलियां पानी-पानी याद आईं

बाढ़ में या फिर सूखे में कुम्हलाए खेत
घर में बैठी बहन सयानी याद आई

बाबू के गुस्से से सहमा – सहमा घर
अम्मा की गहरी पेशानी याद आई

बूढ़े पीपल के ऊपर जिन्नात के घर
नीचे बैठी कुतिया कानी याद आई

छोटी सी लड़की की सोंधी-सी मुस्कान
छोटे लड़के की नादानी याद आई

रेल की सीटी, दुल्हन के सकुचाए हाथ
हवा में उडती चूनर धानी याद आई

अरसे बाद जो अपना बचपन याद आया
अपनी बेतरतीब जवानी याद आई !

-ध्रुव गुप्त