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नज़्म

सवेरे मुंह अंधेरे छोड़ना बिस्तर
नहीं मुश्किल कुछ ऐसा

मगर उठकर करूं क्या
कोई है ही नहीं ऐसा
जिसे आदत हो मेरी
और मेरे घर पर ना होने से
पहाड़ हो जाए दिन जिसका

यही तो दुख है मेरा
मेरे मसरूफ होने से
कोई खाली नहीं होता

शारिक कैफ़ी