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धुआं

कितनी पास हो तुम
बिल्कुल करीब
लेकिन पता है तुम्हें
जिस समाज को मैं धुंए में उड़ता हूं
बस उसी वजह से दूर हो तुम
कायर नहीं हूं मैं
बस लड़ने से तुमने रोक रखा है
पता नहीं क्यों कृष्ण बनी फिर रही हो
क्या तुम्हें भी इंतज़ार है महाभारत का
लेकिन पता है तुम्हें
अर्जुन नहीं हूं मैं
अगर हार गया तो
क्या बनोगी पद्मिनी
अरे कहाँ भटक गया हूं मैं
लेकिन पता है तुम्हें
यहाँ कोई जंग नहीं
कोई महाभारत कोई रामायण नहीं
बस तुम हो
बहुत करीब
बस ये जो समाज है ना
जिसे मैं धुंए में उड़ा देता हूं
बस उसी वजह से दूर हो तुम
तो तुम भी उड़ा दो ऐसे धुंए में
तुम्हें पता है ना
इसी धुंए के इंतजार में हूं

रजत अभिनय