You are currently viewing दास्तान

दास्तान

दिन कट कट के गिरते हैं
शाम के आँचल में सिर रख
लम्हें सो जाते हैं

रात एक नदी सी बहती है
और हम दोनों
अलग अलग किनारों से
टूटे पुल पर चलते हैं

आसमां का रंग लाल से
काला हो जाता है
फिर भी तो बगीचों में
फूल खिलते हैं

यूँ तो समझने को बाकी
बहुत कुछ न हो
पर बातों के दरमियां
चुप्पी के पल खलते हैं

कुछ अश्क गिरने के पहले
सूख जाते हैं
पर ऐसा भी तो होता है न
कभी हंसते हंसते
ऑसू निकल पड़ते हैं

संजय पटेल