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खुला आसमान

दोस्ती महज़ रिश्ता ही नहीं, फ़र्ज़ है यारों का
खुदा करे शहर मेरे, ऐसी सरकारें ना हो ।

गिले शिकवे तो तजुरबे हैं ज़िंदगी के,
ठोकर चाहे रास्ते लगे या लगे घर की चौखट में
खुदा करे कभी इन रिश्तों के गलियारे न हों

तड़पता होगा सूरज भी, के सुबह की साँझ ना हो,
पल दो पल की मनवारे हैं राही,
कभी देखा फिर खुला आसमान ना हो..

-कृष्णकांत पाटीदार