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क़िस्मत का लिखा…

ग़ज़ब की नाच रही थी वो। उसके शरीर के पोर पोर में जैसे स्प्रिंग फिट था। पैरों की थिरकन में बिजली समाई थी। जिस्म का हर पोर पोर अपने अलग अलग थिरकन से दर्शकों में रोमांच पैदा कर रहा था।
जजेज़ हैरान और दर्शक परेशान थे इस पांच साल की बच्ची का परफॉर्मेंस देखकर।
जी हां! पांच साल की बच्ची मर्ज़ीना ने इस डांस कंपटीशन का फ़र्स्ट प्राइज़ अपने नाम किया था।
उद्घोषक ने जब मर्ज़ीना के अभिभावक का नाम पुकारा
तो हॉल में मौजूद तमाम निगाहें दोनों पैर से विकलांग अब्दुल्लाह की तरफ़ उठ गईं जो घिसटता हुआ स्टेज की तरफ़ बढ़ रहा था।
अब्दुल्लाह के स्टेज पर चढ़ते ही मर्ज़ीना अब्बू-अब्बू कहते हुए उससे लिपट गई और फफक फफक रोने लगी।
पहले तो अब्दुल्लाह के ख़ुशी के आंसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे लेकिन जब स्टेज पर मौजूद लोगों ने उसकी हौसला अफ़ज़ाई की तो उसने बताया कि वो मर्ज़ीना का गुरु भी है, मां भी है और बाप भी। उसने पैरों का काम अपने हाथों से लेते हुए, हाथों पर नाच नाच कर मर्ज़ीना को नाचना सिखाया है। आज उसकी सारी ज़िंदगी की मेहनत को मर्ज़ीना ने सार्थक कर दिया।
दरअसल मर्ज़ीना की कहानी ये है की उसे अब्दुल्लाह ने कचरे के ढेर से उठाया था।
अपने शहर का उभरता हुआ डांसर अब्दुल्लाह एक हादसे में अपने दोनों पैरों से हाथ धो बैठा था। हादसे के बाद जब उसकी आंख खुली तो ख़ुद को एक सरकारी अस्पताल के बेड पर पाया। हैरत तो तब हुई जब उसे ये मालूम पड़ा कि वो अपने शहर से तीन सौ किलोमीटर दूर, किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती है।
उसकी क़िस्मत में डांसर बनना नहीं लिखा था। वो जब भी अपने पैरों की तरफ़ देखता दिल में एक ज़बरदस्त टीस सी उठती और वो एक सर्द आह भरकर रह जाता।
सरकारी इलाज से ठीक होने में उसे तीन महीने लग गए। उसके बाद अब्दुल्लाह इसी शहर का होकर रह गया और कबाड़ ख़रीद बेचकर कर अपनी ज़िंदगी गुज़ारने लगा। इस अंजान शहर में उसको अच्छा बुरा कहने वाला कोई नहीं था इसलिए ज़िंदगी बड़े आराम से कट रही थी। गर्मी के दिनों में में फुटपाथ पर और जाड़े के दिनों में रैनबसेरा में उसकी रातें कटा करती थीं।
वो जाड़े की एक कोहरा आलूद सर्द सुबह थी। मस्जिदों में अज़ान हो रही थी और वो जागने की कोशिश कर रहा था तभी बग़ल के कचरे के ढेर से किसी नवजात के सिसकने की आवाज़ पर वो मोतहर्रिक हो उठा।
नज़दीक जाने पर कपड़े में लिपटी हुई एक मासूम परी उसका इंतज़ार कर रही थी। उसने फ़ौरन उस नन्हीं सी जान को अपने सीने में दुबकाकर गर्मी देना शुरू कर दिया। ऐसा लगा रहा था कि कुछ ही देर पहले उसे यहां कोई फेंक गया था।
सूरज निकलते निकलते अब्दुल्लाह की गोद रौशन हो चुकी थी और तब से आज तक अब्दुल्लाह मां और बाप दोनों बनकर उसकी परवरिश कर रहा है। उसने उसका एडमिशन इंग्लिश मीडियम स्कूल में कराया हुआ है और सुबह शाम उसे डांस की ट्रेनिंग दिया करता है।
उसने ठाना है कि मर्ज़ीना को ऐसी डांसर बनाएगा कि उसको जन्म देने वाले उसे दूर से देखते हुए अपनी क़िस्मत पर आंसू बहाते नज़र आए।

अब्दुल ग़फ़्फ़ार