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एक खोया सा शहर

उस शहर में कभी जाना होता है तुम्हारा?
जहां कई इमारतों की खिड़कियों से हर रोज़ झांकती हैं दबी कुचली ख़्वाहिशें
जिस शहर के रास्तों ने होते देखे हैं ढेरों हादसे और फिर दम तोड़ती आवाज़ें
जहां सारे मौसम उन मकानों की छतों से गुजरते हैं जिसने देखी हैं कई आत्महत्याएं
जिस शहर के हिस्से के आसमान में बर्बाद हुआ है करोड़ों सितारों का टूट जाना

वहां रहने वाले लोगों से मिले हो कभी?
जिस शहर में एक ही पुल है, एक ही नदी और अंधेरे में बना एक ही मंदिर
जिस शहर में मोहब्बत तो होती है पर उसे कर लेने की आज़ादी नहीं
जिस शहर की शाम ने सिर्फ़ 7 बजते देखे हैं या फिर देखा है चमकता सूरज
उस शहर में अंधेरा बाहर नहीं होता वो तो रहता है अंदर लोगों के घरों में

हां मैंने देखा है वो शहर; हर एक शहर के अंदर
मैंने देखे हैं ऐसे लोग; हर तरह की भीड़ में अंदर

कभी वक़्त मिलेगा तो बैठेंगे साथ
अभी? नहीं अब नहीं,
घड़ी बता रही है बजने को है सात!

  • अनुजा विद्या श्रीवास्तव