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इल्जाम

मिली थी मैं तुम से कल मोहल्ले के चौराहे पे
बात कल रात की थी
गुम सुम बिल्कुल चुपचाप मैं निकाल आई
नजरें बचाते हुए
इल्म हुआ बरसों पहले
न लग जाए इल्जाम कोई
लौट आई मैं छुपते छुपाते
देखते ही तुम न कह देते
अरे…..
तुम मेरा पीछा तो नहीं कर रही… !

-कामिनी कुमारी दास