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आदमी

आदमी के फ़लसफ़े को जी रहा है आदमी
आदमी को देखकर यह सोचता है आदमी

इक शिकन माथे पे आयी और माथा हिल गया
गर जिया है इस तरह तो क्या जिया है आदमी

इक ग़ज़ल किसने कही है आदमी के हाल पर
इक सदी से शे’र कहता आ रहा है आदमी

मैं सुख़न की गोंद में लेटा हुआ इक बच्चा हूँ
छीन लेने की मशक्कत में लगा है आदमी

मार देगी ये सियासत इस सुख़न को हो न हो
जिस तरीक़े से सियासत में लगा है आदमी

-उत्कर्ष सिंह