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आँखों में मशाल

अपनी बेटी को
सिखा रहा हूँ आँख मारना
जिससे वो एक झटके में ही
ध्वस्त कर दे उसे घेरने वाली
मर्दवादी किलेबंदी
उसे सिखा रहा हूँ आँखें मटकाना
कि वो देख सके तीन सौ साठ डिग्री
और भेद सके
चक्रव्यूह के सारे द्वार
उससे कह रहा हूँ कि वो
सोये तो खुली आँखों से
जिससे जान सके
कि अंधेरे में किस तरह
बेखटके चले आते हैं
दिन के कुछ देवता बनकर शैतान
उसकी आँखों के अंदर
मैं बना रहा हूँ एक सुरक्षा द्वार
जिसे पार करने से पहले
देनी हो हर किसी को परीक्षा
मैं उसकी आँखों में जला रहा हूँ
एक मशाल
जो जले और जला भी सके।

-आलोक कुमार मिश्रा