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अनकही ख्वाहिशें

तुम नहीं मानती थी भगवान को,
तुम कहती थी तुम्हें दफन होना है समंदर में।
समंदर की लहरों में,
तुम चाहती थी गोते लगाए तुम्हारी लाश,
और तुम निवाला बनो मछलियों का।

पर मेरे प्यार,
तुमने क्यों चुनी यह जिंदगी?
तुम्हारी सोच से बिल्कुल उलट,
अब तुम जलोगी इन लकड़ियों में,
और तुम्हारी राख को समेटकर बनेगा एक चबूतरा।
वहां भरकर मिट्टी खेत की,
मैं उगाऊंगा एक शहतूत का पेड़,
ताकि तुम्हारी रूह आजाद हो उस ओटले से,
और पत्ते पर आकर
छू ले ओस की एक बूंद।

शुभम शर्मा-