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मैं वतन के लिए जीता हूँ

चाहे जितनी मुश्किलों का सामना करना पड़े,
सबको हराकर जीत कायम करता हूँ,
शांति, सौहार्द का हर एक पल गढ़ता हूँ,
अपने वतन के प्रेम में हर क्षण जीता-मरता हूँ
मैं वतन के लिए जीता हूँ.

हर कोई चाहे छोड़ दें मुझे,
लेकिन अपनी धरती माँ को नहीं छोड़ता हूँ,
जिस्म छलनी हो जाएँ,
लहू भी नदी के कतरे जैसा बहाता हूँ,
दुश्मनों के सीने पर तिरंगा गाड़ता हूँ ।
मैं वतन के लिए जीता हूँ…

अंतिम सांसों की लकीरें,
चाहे साथ छोड़ दें मेरा,
जीतकर कर दूंगा नया सवेरा,
हर पल मौत से लड़ता हूँ
मैं वतन के लिए जीता हूँ…

क़ैद कर लो तुम मुझे जंजीरों में,
कोई जंजीर नहीं बन पाया,
एक शेर को किसी जंजीरों में,
आज तक ना जकड़ पाया,
मैं हर रोज बॉर्डर पर मरता हूँ
मैं वतन के लिए जीता हूँ…

रोहित प्रसाद ‘पथिक’