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अप्रैल तुम फिर कभी मत आना

अपने कॉलेज के दिनों में मार्च के बाद
गाँव से पटना आने पर
बस से उतरते ही गला सूखने लगता था
मैंने अप्रैल को कभी पसंद नहीं किया
मैंने यही नापसंदगी कई राहगीरों के चेहरे पर देखी

मैं अप्रैल से बाहर निकल नहीं सका
अप्रैल मुझे डराता रहा है अब तक
मेरा गला अब भी सूखता है इस महीने में

अप्रैल कितना अभागा है इस बरस
तुम्हारा हर एक दिन
बर्बरता का नया प्रयोग है हमारी बेटियों पर
एक दिन अप्रैल तुम मरोगे अपने ही यातना गृह में।

रोहित ठाकुर