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ये वक्त भी ढल जाएगा

कल जब फोन आया था उनका
बोल गए बड़े तजुर्बे से
कि सिर्फ तुम ही अकेले नहीं रोते
सिर्फ तुम ही अकेले नहीं सोते
देखा तो है 18 साल से मुझे रोज उस पेड़ के नीचे अकेले बैठे हुए
बिना बोले कुछ कहे उस रास्ते को तकते हुए
रात को तीन पन्ने पढ़कर सोते हुए
देखा है तुमने
मैनें पूछा – क्यों नहीं कर पाता मैं?
फिर बोल पड़े बड़े निठल्ले से
अभी जो खुले से बाल, छोटी सी नाक
फूटती सी हंसी, जीने नहीं देती
जो नुक्कड़ की चाय, दोस्तों की बातें
जलती सिगरेट, जाने नहीं देती
हो जाएगा एक दिन सब धीमा
पलट जाएंगे पन्ने, बिखर कर जुड़ जाओगे तुम
और अगर सब यूं ही चलता ही चला गया
तो क्या मजा है जीने का
एक दिन रोये नहीं
एक दिन नाचे नहीं
कभी किसी को चाहा नहीं
कभी सब ताक पर छोड़ा नहीं
कभी बिना नींद करवटें बदली नहीं
कभी उनको ख़्वाब में जिया नहीं
तो क्या मतलब है जीने का
अभी तो बच्चे हो, एक ऐसा दिन भी आएगा
जब कोई तुम्हें फोन कर जगाएगा
मेरा फ़ोन काट कर तू किसी और से बतियाएगा
दोपहर में लड़ोगे किसी से
फिर शाम एक कंधे पर झुक कर आंसू भी बहाओगे
अबे इसे थामने के लिए आंचल नहीं, कोई ओढ़नी होगी
जब ये कंधा तुम्हें गैर बताएगा
फिर तुम लौट कर आओगे
मुझे फोन मिलाओगे
फिर से मैं यही सुनाऊंगा
कि सब धीमे-धीमे ढल जाएगा
सब धीमे-धीमे ढल जाएगा

-रजत अभिनय